एक लब्ज मैं क्या तरीफ करूं आपकी अप लाब्जों मैं कैसे समां पाओगे ,
बस इतना जन लो की जब लोग दोस्ती के बारे मैं पूछेंगे,
तो मेरी आँखों से सिर्फ तुम नजर आओगे !
वादियों से चाँद निकल आया है,
फीजाओं मैं नया रंग छाया हैं ,
आप हो की खामोस बेठे हैं ,
अब तो मुस्कराओ क्यूंकि एक बार फिर हमारा स्क्रैप आया है.
जीवन की लंबी राहों में,
तेरे बिन हम रह ना पाए
होठों पर तो गीत बहुत थे,
तेरे बिन हम कह ना पाए।।
संध्या की मधुरिम बेला में,
तन्हाई मुझको डसती है
चंदा संग इठलाती रजनी,
व्यंग्य हँसी मुझ पर हँसती है
अश्रु बिन्दु पलकों में ठहरे,
निकल नयन से बह ना पाए
जीवन की लंबी राहों में,
तेरे बिन हम रह ना पाए।
भीड़ भरे इन गलियारों में,
तेर बिना एकाकीपन है
साहिल खोज रही लहरों में,
भटकी तरणी सा जीवन है
झंझावत सहे हैं हँसकर,
तुझसे दूरी सह ना पाए
जीवन की लंबी राहों में,
तेरे बिन हम रह ना पाए।।
तेरे ही सपने नयनों में,
दिल में तेरी ही धड़कन है
उलझा है तन संबंधों में,
खोया तुझमें मेरा मन है
सिमटे सप्त सिंधु अंतर में,
पर तुम इसकी तह ना पाए
जीवन की लंबी राहों में,
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कल फुरसत न मिली तो क्या होगा
इतनी मोहलत न होगी तो क्या होगा ,
रोज तुम्हारा स्क्रैप की इंतज़ार करता हूँ
कल आँखें न रहे तो क्या होगा.
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नई सदी के रंग में ढलकर हम याराना भूल गए
सबने ढूँढे अपने रस्ते साथ निभाना भूल गए।
शाम ढले इक रोशन चेहरा क्या देखा इन आँखों ने
दिल में जागीं नई उमंगें दर्द पुराना भूल गए।
ईद, दशहरा, दीवाली का रंग है फीका-फीका सा
त्योहारों में इक दूजे को गले लगाना भूल गए।
वो भी कैसे दीवाने थे खून से चिट्ठी लिखते थे
आज के आशिक राहे-वफा में जान लुटाना भूल गए।
बचपन में हम जिन गलियों की धूल को चंदन कहते थे।
बड़े हुए तो उन गलियों में आना जाना भूल गए।
शहर में आकर हमको इतने खुशियों के सामान मिले
घर-आँगन, पीपल-पगडंडी, गाँव सुहाना भूल गए।
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सेहर है या कोई सहरा है दोस्त,
सभी बातों पे क्यों पहरा है दोस्त,
जहाँ कश्ती मेरी आकर रुकी है
समन्दर और भी गहरा है ए दोस्त,
हज़ारों आईने हैं इस जगह पर
कहाँ खोया मेरा चेहरा है दोस्त,
जो कहता है के सुनता हूँ सभी की
असल में वो ही तो बहरा है दोस्त,
लगामें बस लबों तक ही नहीं हैं
यहाँ एहसास पर पहरा है ए दोस्त,
दिखे कैसे यहाँ पर कुछ किसी को
निगाहों में भरा कोहरा है दोस्त ,
कहे "विकास" ये सच है सिर्फ़ सच है
लगा चेहरों पे इक चेहरा है मेरे दोस्त !
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