एक रोटी सही मेहनत से कमा कर देखो
ज़िन्दगी क्या है पसीने में नहा कर देखो
सिर्फ़ अपने लिए राहत की तमन्ना कैसी
दूसरों के लिए तकलीफ़ उठा कर देखो
तुमको मजबूरी का अन्दाज़ा भी हो जाएगा
फूल मेहनत के हथेली पे खिला कर देखो
सुबहा और शाम का संगम नज़र आजाएगा
ज़ुल्फ़ को आरिज़-ए-रोशन पे गिरा कर देखो
सिर्फ़ अपने ही नशेमन को बचाना कैसा
हर नशेमन को तबाही से बचा कर देखो
तुमको हर गाम पे जीने के मज़े आएँगे
खिदमत-ए-ख्ल्क़ में अपने को मिटा कर देखो
कितना दुशवार है इस दौर में जीना अनवर
इक दिया तुम भी हवाओं में जला कर देखो!!
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